25 की रात से ही बवाल की आशंका थी; बड़े किसान नेता नहीं संभाल पाए स्थिति, पुलिस भी गलतियां करती रही
26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड के दौरान हिंसा को लेकर अब सोच-विचार का दौर शुरू है। कुछ किसान नेता इसके लिए सरकार और पुलिस को दोषी ठहरा रहे हैं। वहीं, दिल्ली पुलिस का कहना है कि परेड के दौरान किसानों की ओर से शुरू से वादाखिलाफी हुई और कई संगठनों ने पहले से ही बवाल की तैयारी कर रखी थी, लेकिन चूक दोनों ओर से हुई। कैसे इसे समझते हैं...
परेड की कमान युवाओं के हाथ में आ गई थी और तय बातों का लगातार उल्लंघन हो रहा था, लेकिन वरिष्ठ किसान नेताओं ने पुलिस को इस बात का कोई इनपुट नहीं दिया कि चीजें उनके हाथ से निकल चुकी हैं और भीड़ मनमाने तरीके से आगे बढ़ रही है। पुलिस ने पांडवनगर, आईटीओ पर जब किसानों को रोकने की कोशिश की तो भी कोई वरिष्ठ किसान नेता युवाओं को समझाने वाला नहीं था।
सिंघु बॉर्डर पर 25 जनवरी की रात से ही किसान संयुक्त मोर्चे के मंच पर युवाओं का कब्जा था। वहां खुलेआम नारे लग रहे थे कि परेड तय रूट पर नहीं, रिंग रोड पर करेंगे, लेकिन वरिष्ठ नेताओं ने न तो इसे रोका और न ही पुलिस को इस बात की सूचना दी। जो लोग किसानों के जत्थों के आगे थे। वे नए चेहरे थे, इनकी पुलिस के साथ कोई ट्यूनिंग नहीं थी। जब भीड़ हिंसक होने लगी तो मौके पर पुलिस अधिकारी किससे बात करें, समझ नहीं पा रहे थे। किसान आंदोलन के जाने-पहचाने चेहरे मौके पर नजर ही नहीं आए।
टीकरी से निकली परेड काफी दूर तक रूट पर रही, लेकिन हिंसा की खबरें आने के बाद नांगलोई में रूट तोड़ दिया गया और पुलिस को खदेड़ दिया गया। किसानों के जो वॉलंटियर्स रूट पर तैनात थे, पुलिस उनके मार्फत बात कर रही थी, लेकिन उग्र युवाओं ने उनकी बात नहीं सुनी।
25 को तीनों बॉर्डर पर जो माहौल था, उससे साफ लग रहा था कि युवा रूट तोड़कर दिल्ली में घुसने की कोशिश करेंगे, लेकिन पुलिस की ओर से ऐसी स्थिति से निपटने की तैयारी बहुत कमजोर थी। उदाहरण के लिए पुलिस ने गाजीपुर से रूट तोड़कर निकले किसानों को पांडवनगर में रोकने की कोशिश की, लेकिन भीड़ के सामने पुलिस की टीम ज्यादा देर नहीं ठहर पाई। अगर पांडवनगर में पर्याप्त फोर्स होता तो किसानों को यहां रोका जा सकता था। इससे किसान आईटीओ नहीं पहुंच पाते तो वहां जो भारी हिंसा और तोड़फोड़ हुई वह न होती।
किसानों से भिडंत में पुलिस के पास संख्या के साथ-साथ संसाधनों की भी कमी साफ नजर आई। सीमेंट के हैवी बैरिकेड्स की संख्या कम थी। जो बैरीकेड लगे थे किसानों के ट्रैक्टरों को उन्हें तोड़ने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। तेज रफ्तार से भागते ट्रैक्टरों को रोकने के लिए पुलिस की गाड़ियां नाकाफी थीं। हैवी कंटेनरों की संख्या भी पुलिस के पास कम थी। कुछ बैरिकेड पर इन्हें लगाया गया, लेकिन किसानों ने अपनी भारी क्रेनों से हटा दिया।
पुलिस एक समय इस कदर लाचार थी कि पांडवनगर में पुलिस की क्रेन को भीड़ अपने साथ लेकर चली गई। इसे करीब 3 किलोमीटर आगे ले जाकर छोड़ा गया। पुलिस दस्ते को लेकर आई बस को भी किसान साथ में लेकर चले गए। पुलिस अधिकारी भी मानते हैं कि इतनी संख्या में ट्रैक्टरों को रोकने का दिल्ली पुलिस के पास ज्यादा अनुभव भी नहीं था। इससे भी काफी जगह चूक हुई।