MP : कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों के लिए ज्यादा खतरे के संकेत, इंदौर के अरबिंदो में 12 बच्चे भर्ती तो चार की मौत : जांच में मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम मिला
कोरोना की तीसरी लहर से बच्चों के खतरा की आशंका ऐसे ही नहीं जताई जा रही है। इसके पीछे कारण भी हैं। इंदौर के अरबिंदो मेडिकल कॉलेज में 12 बच्चे ऐसे भर्ती हुए थे, जिनमें कोरोना के लक्षण थे ही नहीं। लेकिन जब इनका एंटीबॉडी टेस्ट कराया तो पता चला कि इन्हें कोरोना था और ये ठीक भी हो गए। मगर बगैर लक्षण के आए इस कोरोना ने जाते-जाते मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम बच्चों को दे गया। इससे उनकी जान खतरे में पड़ गई। इन 12 बच्चों में से 4 बच्चे समय पर अस्पताल में भर्ती नहीं हुए और उन्हें बचाया नहीं जा सका।
एक्सपर्ट के अनुसार मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम कोई बीमारी नहीं है, बल्कि ये लक्षणों पर आधारित एक सिंड्रोम है। इसमें बच्चों के फेफड़ों, दिल, पाचन तंत्र, गुर्दे, त्वचा, मस्तिष्क और आंखों में इंफेक्शन और सूजन देखी गई है।
क्या यह कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों के लिए ज्यादा खतरे का संकेत है, इस पर जानिए एक्सपर्ट की राय-
इंदौर के अरबिंदो मेडिकल कॉलेज के संचालक डॉ. विनोद भंडारी ने मीडिया को बताया कि अस्पताल के पीडियाट्रिक सेक्शन में कोरोना का इलाज करते बच्चों के बीच कुछ ऐसे बच्चे आए, जिनमें या तो कोरोना के लक्षण नहीं थे या फिर उनके माता-पिता लक्षणों को नहीं समझ पाए।
अस्पताल के डॉक्टरों ने जब इन बच्चों की जांच की तो उन्हें एमआरएससी यानी मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम के लक्षण नजर आए। इस सिंड्रोम का शिकार हुए बच्चों में लगातार बुखार देखा गया और कोरोना के माइल्ड सिम्टम यानी सिरदर्द, हलकी सर्दी-खांसी जैसे लक्षण नजर आए। इसके बाद इन बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनमें से कुछ बच्चों की कोविड टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आई, लेकिन इन बच्चों के एंटीबॉडी टेस्ट कराए गए तो इनमें एंटीबॉडी पाई गई, यह बच्चे इतनी गंभीर बीमारी के शिकार हो गए कि उनका इलाज जीवन रक्षक दवाइयों से करना पड़ा। ऐसे ही कारणों के साथ भर्ती हुए 12 बच्चों में से 4 बच्चों को बचाया नहीं जा सका।
पिछली बार बच्चों को भर्ती करने की नौबत कम आई थी
एमवाई अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर हेमंत जैन का कहना था कि पिछली लहर में बच्चों में कोरोना संक्रमण कम देखा गया था। जिसे डॉक्टर अपनी भाषा में ए सिस्टमैटिक कहते है। उस समय बच्चों को अस्पताल में भर्ती करने की नौबत नहीं आई थी। लेकिन वर्तमान में जो कोरोना की लहर चल रही है उसमें एक या दो परसेंट बच्चों में यह इफेक्ट कर रहा है।
डॉ. हेमंत जैन ने यह माना कि दूसरी लहर में 10 से 20% तक बच्चों में यह संक्रमण मिल रहा है। हालांकि बड़ों की अपेक्षा बच्चों में मृत्यु दर कम देखी जा रही है। बच्चे वर्तमान में संक्रमण के बाद जल्द ठीक हो रहे है। लेकिन इस बीमारी से उनके हार्ट,लंग, किडनी और आंत सभी प्रभावित हो रहे हैं, जिससे बच्चे शॉक में चले जाते है।
तीसरी लहर में क्या होगा
डॉक्टर हेमंत जैन ने कहा, देश में 18 से कम आयु वाले 30% हैं। तीसरी लहर तक 65 से ऊपर वाले और 45 से ऊपर वाले व्यक्तियों को लगभग 2 वैक्सीन के डोज लग चुका होगा। वर्तमान में जो अभियान चल रहा है, उसमें 18 प्लस वालों को पहला डोज लग रहा है। इस स्थिति में बच्चे ही ज्यादा प्रभावित होंगे।
क्या किसी मौसम में कोरोना अधिक इफेक्ट कर रहा है
डॉक्टर के मुताबिक दिसंबर 2019 - जनवरी 2020 में कोरोना वायरस एक्टिव हुआ था। विश्व में सबसे पहले चाइना के बाद यूरोप में इस वायरस ने अटैक किया था। उस समय यूरोप में काफी ठंड थी। वहीं भारत में यह पिछले वर्ष अप्रैल और मई में अचानक से पीक पर पहुंचा और अगस्त-सितंबर तक इसने अपना प्रभाव रखा। इससे मुझे नहीं लगता कि इसका कोई मौसम से तालुक है
बच्चों के रोग को पहचानें और तत्काल अस्पताल लाएं…
अरबिंदो हॉस्पिटल के बाल चिकित्सा विभाग की एचओडी डॉक्टर गुंजन केला ने कहा कि इन बच्चों में ऐसे लक्षण नजर आने पर उन्हें तुरंत अस्पताल में लाएं। जिन बच्चों का इलाज किया जा रहा है उनमें डायरिया के साथ ही खून की प्लेटलेट कम होने और गंभीर होने की स्थिति में पहुंचने का खतरा तो बना ही रहता है। साथ ही जिन बच्चों का उपचार किया गया उनमें से कुछ बच्चे माइल्ड हार्ट अटैक का शिकार हुए। इन्हें तत्काल इलाज मिलने पर ही बचाया जा सकता है।
मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम के लक्षण
– आंखें लाल होना
– शरीर पर दाने उभरना
– जुबान लाल होना
– धडक़नें तेज हो जाना
– बच्चो का सुस्त होना
– सांसों का तेज चलना
– बच्चों को सांस लेने में तकलीफ महसूस होना
– ऐसे बच्चे हार्ट अटैक का भी शिकार हो रहे हैं और उनकी धडक़नें घट-बढ़ रही है।