Marital Rape Kanoon : पति का अपनी पत्नी से जबरदस्ती संबंध बनाना रेप है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट

 

पति का अपनी पत्नी से जबरदस्ती संबंध बनाना रेप है या नहीं? ये अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा। 19 जुलाई यानी बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने मैरिटल रेप के मामले में सुनवाई की बात कही है। भारत दुनिया के उन 49 देशों में शामिल है, जहां पत्नी से रेप करने वाले पति को समाज के साथ कानून भी दोषी नहीं मानता है। केंद्र सरकार मैरिटल रेप को अपराध मानने के पक्ष में नहीं है। सरकार का मानना है कि इससे विवाह सिस्टम कमजोर होगा।

दो हाईकोर्ट के फैसलों और कई याचिकाओं पर होनी है सुनवाई
मैरिटल रेप से जुड़े मामले में दिल्ली और कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसलों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इसके अलावा मैरिटल रेप को IPC की धारा 375 में शामिल नहीं करने पर भी सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर हुई हैं। इन सभी याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की लिस्टिंग की है।

दिल्ली हाईकोर्ट का मामला: इसी साल 19 जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट में मैरिटल रेप का मामला पहुंचा था। जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने इस मामले की विस्तृत सुनवाई की थी, लेकिन पिछले साल 11 मई 2022 को दिल्ली हाईकोर्ट के 2 जजों ने अलग-अलग फैसला दिया था।

जस्टिस राजीव शकधर ने वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को रद्द करने का समर्थन किया था। वहीं, जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि IPC के तहत अपवाद असंवैधानिक नहीं है और एक समझदार अंतर पर आधारित है।

कर्नाटक हाईकोर्ट का मामला: 23 मार्च 2023 को कर्नाटक हाईकोर्ट ने पति पर लगाए गए रेप के आरोपों को समाप्त करने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने इस मामले में IPC की धारा 375 में दिए गए अपवाद को मानने से इनकार कर दिया।

कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने इस मामले में कहा था कि तथ्यों के आधार पर इस तरह के यौन हमले/दुष्कर्म के लिए पति को पूरी छूट नहीं दी जा सकती है।

मैरिटल रेप क्या है और भारत में इस पर क्या कानून हैं?
बिना पत्नी की इजाजत के पति द्वारा जबरन सेक्स संबंध बनाने को मैरिटल रेप कहा जाता है। मैरिटल रेप को पत्नी के खिलाफ एक तरह की घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न माना जाता है। भारत में मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जाता है।

पिछले कुछ सालों के दौरान मैरिटल रेप को अपराध बनाने वाले कानून बनाने की मांग तेज हुई है। दिल्ली हाईकोर्ट 2015 से ही इस मामले पर कई याचिकाओं की सुनवाई कर रहा है। हालांकि, केंद्र सरकार का कहना है कि इस मुद्दे पर कोई कानून बनाने से पहले एक व्यापक विचार-विमर्श की जरूरत है, क्योंकि ये समाज पर गहरा प्रभाव डालेगा।

भारत में मैरिटल रेप पर कानून: रेप को दंडनीय अपराध घोषित करने वाले इंडियन पीनल कोड यानी IPC की धारा 375 के (अपवाद-2) के मुताबिक मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना गया है। इस अपवाद के अनुसार यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी से सेक्स संबंध बनाता है और अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं है, तो इसे रेप नहीं माना जाएगा।

यानी भारत में अगर पति अपनी पत्नी की सहमति या बिना सहमति के सेक्स संबंध बनाता है और पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं है, तो उसे रेप नहीं माना जाता है। इसका ये भी मतलब है कि पति अगर जबरन सेक्स संबंध बनाए तो भी वह अपराध और रेप नहीं माना जाएगा।

रेप को लेकर क्या कहता है भारतीय कानून

किसी पुरुष द्वारा महिला के साथ जबरन सेक्स संबंध बनाने को IPC की धारा 375 के अनुसार रेप माना जाता है। रेप को परिभाषित करने के लिए IPC की धारा 375 में 6 वजहें बताई गई हैं:

महिला की इच्छा के विरुद्ध सेक्स संबंध बनाना।

उसकी सहमति के बिना सेक्स संबंध बनाना।

महिला या उसके किसी करीबी को जान का भय दिखाकर संबंध बनाने के लिए सहमति हासिल करना।

जब पुरुष जानता हो कि वह महिला का पति नहीं है और महिला ने उस पुरुष को अपना पति मानकर सहमति दी हो।

जब सहमति देते समय महिला दिमागी रूप से स्वस्थ न हो, नशे में हो या उसे कोई नशीला पदार्थ दिया गया हो।

16 साल से कम की महिला की सहमति या बिना सहमति के संबंध बनाना रेप है।

ऊपर बताई गई वजहों में से कोई भी भारत में शादी के बाद सेक्स संबंधों पर लागू नहीं होती है। यानी पति पत्नी से उसकी मर्जी के बिना या जबरन सेक्स संबंध बना सकता है और ऐसा करना अपराध नहीं है।

रेप कानून से जुड़ी IPC की धारा 375 से अपवाद हटाने के लिए 4 तरह के तर्क दिए जा रहे हैं…

1. मैरिटल रेप को अपराध नहीं मानना एक तरह से संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत दिए जाने वाला समानता, गरिमा पूर्ण जीवन, व्यक्ति के सम्मान और सेक्शुअल-पर्सनल जीवन में स्वतंत्रता के अधिकारों के खिलाफ है।

2. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि मैरिटल रेप को अपराध नहीं मानना एक तरह से विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच एक वर्गीकरण करता है। इस तरह IPC की धारा 375 में अपवाद वाला हिस्सा एक विवाहित महिला से यौन गतिविधि के लिए सहमति देने का अधिकार छीन लेता है।

3. याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया है कि IPC में यह प्रावधान संविधान लागू होने से पहले जोड़ा गया था, ऐसे में अब इसकी जरूरत नहीं है।

4. 2012 में 23 वर्षीय महिला के साथ दिल्ली में हुए गैंगरेप के बाद आपराधिक कानून सुधार के लिए जे एस वर्मा समिति बनाई गई थी। 2013 में इस समिति ने मैरिटल रेप को IPC की धारा 375 के अपवाद से हटाने की सिफारिश की थी, लेकिन केंद्र सरकार ने तब इस मामले में कोई फैसला नहीं लिया था।

मैरिटल रेप को अपराध नहीं मानने के पीछे 2 तरह की बातें हैं…

1. स्थायी सहमति: जब कोई महिला एक पुरुष से शादी करती है तो वह एक तरह से अपने पति को संबंध बनाने के लिए स्थायी सहमति देती है, जिससे वह मुकर नहीं सकती है। औपनिवेशिक काल से चले आ रहे इस तरह के विचार इस पर आधारित हैं कि एक महिला अपने पति की 'संपत्ति' है।

2. सेक्स की अपेक्षा: एक महिला से यह उम्मीद की जाती है कि वह अपने पति की यौन इच्छाओं को पूरा करने के लिए बाध्य है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि विवाह का मुख्य उद्देश्य बच्चा पैदा करना है। यही वजह है कि महिला अपने पति से संबंध बनाने की बात से इनकार नहीं कर सकती है।

मैरिटल रेप को अपराध मानने से इनकार कर चुकी है भारत सरकार
2016 में मोदी सरकार ने मैरिटल रेप के विचार को खारिज कर दिया था। सरकार ने कहा था कि देश में अशिक्षा, गरीबी, ढेरों सामाजिक रीति-रिवाजों, मूल्यों, धार्मिक विश्वासों और विवाह को एक संस्कार के रूप में मानने की समाज की मानसिकता जैसे विभिन्न कारणों से इसे भारतीय संदर्भ में लागू नहीं किया जा सकता है।

2017 में, सरकार ने IPC की धारा 375 के मैरिटल रेप को अपराध न मानने के कानूनी अपवाद को हटाने का विरोध किया था। सरकार ने तर्क दिया था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने से विवाह की संस्था अस्थिर हो जाएगी और इसका इस्तेमाल पत्नियों द्वारा अपने पतियों को सजा देने के लिए किया जाएगा।

केंद्र ने हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट में मैरिटल रेप पर चल रही सुनवाई के दौरान कहा कि केवल इसलिए कि अन्य देशों ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित कर दिया है, भारत को भी ऐसा करने की जरूरत नहीं है।

19वीं सदी में इंग्लैंड के कानून ने माना कि मैरिटल रेप होता है
जोनाथन हेरिंग की किताब फैमिली लॉ (2014) के मुताबिक, ऐतिहासिक रूप से दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में ये धारणा थी कि पति पत्नी का रेप नहीं कर सकता, क्योंकि पत्नी को पति की संपत्ति माना जाता था।

20वीं सदी तक अमेरिका और इंग्लैंड के कानून मानते थे कि शादी के बाद पत्नी के अधिकार पति के अधिकारों में समाहित हो जाते हैं। 19वीं सदी की शुरुआत में नारीवादी आंदोलनों के उदय के साथ ही इस विचार ने भी जन्म लिया कि शादी के बाद पति-पत्नी के सेक्स संबंधों में महिलाओं की सहमति का अधिकार उनका मौलिक अधिकार है।