REWA : अमित शाह के रीवा दौरे से भाजपा की डूबती नईया पार लगने की उम्मीद

पार्टी के बगियों ने पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ने का किया फैसला, प्रत्याशियों ने ली राहत की सांस

 

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा। प्रदेश में जब से विधानसभा चुनाव की सूगबुगाहट शुरू हुई तब से रीवा एवं मऊगंज जिले के भाजपा नेताओं ने टिकट के लिए अपने अकायों को घेरना शुरू किया और क्षेत्र में अपनी सक्रियता अचानक तेज कर दी। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा पूरे प्रदेश के 230 विधानसभा क्षेत्र के प्रत्याशियों की घोषणा एक-एक कर के पांच सूचियां जारी की। जिसके बाद खासकर विंध्य क्षेत्र में भाजपा में बगावत के आसार नजर आने लगे।

त्यौंथर विधानसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी द्वारा सिद्धार्थ राज को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद स्वर्गीय रमाकांत तिवारी के पुत्र लाला तिवारी एवं वर्तमान विधायक श्यामलाल द्विवेदी वही देवेंद्र सिंह ने भाजपा का दामन छोड़कर बहुजन समाज पार्टी प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में कूद गए। इसी तरफ मनगवां विधानसभा क्षेत्र में भी वर्तमान विधायक का टिकट काटकर कई अन्य दलों में भी रह चुके नेता नरेंद्र प्रजापति को भारतीय जनता पार्टी द्वारा उम्मीदवार बनाया गया तो वर्तमान विधायक पंचूलाल प्रजापति पार्टी से नाराज हो गए ।

इसी वजह से उन्होंने अपनी पत्नी पन्ना भाई प्रजापति से निर्वाचन कार्यालय में तीन नामांकन पत्र दाखिल करवाए एक निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में और दो भाजपा प्रत्याशी के रूप में। इसी तरह कई अन्य क्षेत्र जैसे मऊगंज, सिरमौर, देवतालाब,गूढ़ में भी कई दावेदार भाजपा से टिकट मांग रहे थे। जिन्हें टिकट नहीं मिला तो वह बगावत करने के मूड में थे। किंतु 29 तारीख को अमित शाह के रीवा दौरे के बाद राजनीतिक गतिविधियों में तेजी से इजाफा हुआ जहां से उधर विधानसभा सीट से जब सिद्धार्थ तिवारी नामांकन करने रीवा कार्यालय पहुंचे तो उनके साथ वर्तमान विधायक श्यामलाल द्विवेदी एवं पूर्व विधायक रमाकांत तिवारी के पुत्र लाला तिवारी भी नजर आए।

इसी तरह अन्य विधानसभा क्षेत्र में भी भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले नेताओं ने अमित शाह के दौरे के बाद अपनी इच्छाओं का दमन कर दिया। अमित शाह के दौरे के बाद राजनीतिक गलियारों में इस बात की खबर चल पड़ी की अमित शाह का दौरा पार्टी के कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार कर गया और प्रत्याशियों के लिए संजीवनी साबित हुआ।

पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं का मानना है कि इस दौर से पार्टी में एक जुटता आई है। यह अलग बात है कि जिन बगावती नेताओं ने भले ही सार्वजनिक तौर पर अपने कदम पीछे खींच लिए हो किंतु उन्हें इस बात का मलाल जरूर रहेगा की पार्टी ने उन्हें दरकिनार कर नए प्रत्याशियों को मौका दिया है। अगर यह टीस उनके सीने में कसकती रही तो हो सकता है कि खुले तौर पर वे पार्टी के प्रत्याशी के साथ नजर आए और भीतर ही भीतर पार्टी के प्रत्याशी को हराने के लिए अपने विश्वसनीय लोगों को मैदान में सक्रिय कर दें।