Rewa News : 'आपको कलेक्टर जनता का शोषण करने के लिए नहीं बनाया' : हाईकोर्ट
इंदौर में निगमायुक्त रही प्रतिभा पाल को बतौर रीवा कलेक्टर जज से मिली डांट व कड़ी नसीहत
रीवा। तब राज्य में जो निजाम था, वह अफसरशाही को प्रश्रय देने वाला था। लिहाजा 'ब्यूरोक्रेसी' ही जन-जन की भायविधाता बनी हुई थी। यहां तक कि निजाम की निजामत में लगे जनप्रतिनिधियों को भी अफसरशाही के समय नतमस्तक होना पड़ता था। कई जिलों में तो आफसर सरकार के साथ "संगठन का कामकाज' भी देखा, संभाल रहे थे। फैसले सरकार की जगह अफसर कर रहे थे। सरकार में ब्यूरोक्रेसी के इस जबरदस्त दखल की गूंज दिल्ली तक थी।
जनप्रतिनिधियो की मुख्य शिकायते ही ये थी कि अफसर हमें भी कुछ नहीं समझते। समझते भी कैसे? निजात का पथय जो था। उसी दौर में इंदौर शहर ने भी ब्यूरोक्रेसी के 'उसके' करीब से देखो भी, झोले ली। वह भी किसी 'सामती व्यवहार' की तरह कि जो हमने तय कर दिया, वह अतित है। उस वक्त निगम व जिला प्रशासन की कार्यप्रणाली जनचर्चा का विषय थी, जो आज तक इंदौर में जारी है। इसलिए ही रीवा में हुआ एक घटनाक्रम ड्राट से इंदौर से जुड़ गया।
कहते हैं न, ईश्वर के घर देर है, अंधेर नहीं। ये भी सर्वविदित है कि कोई न्याय करे, न करे, वक्त आने पर ईश्वरीय न्याय होता ही है। चाहे कोई कितना भी ताकतवर हो। ये लोकोक्तियां आज फिर चर्चा में इसलिए आई कि इंदौर का 'ईश्वरीय न्याय' प्रदेश के आखिरी छोर पर बसे रीवा शहर में जाकर पूरा हुआ।
रीवा कलेक्टर को कोर्ट की वो फटकार पड़ी, जो संभवतः किसी कलेक्टर को आज तक नहीं पड़ी होगी। जज साहब ने कलेक्टर को दो-टूक समझा दिया कि आपको कलेक्टर इसलिए नहीं बनाया कि आप जनता का शोषण करें। मामला कड़ी फटकार, डांट पर ही नहीं रुका। कलेक्टर को अपने कार्य व्यवहार व आचरण पर 10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया। मामला एक किसान की जमीन अधिग्रहण से जुड़ा था। इस मामले में माननीय न्यायालय तक के आदेश की अनदेखी हो रही थी। जस्टिस विवेक अग्रवाल ने इस मसले पर न सिर्फ 4 घंटे में कलेक्टर को अपने समक्ष हाजिर करवाया, बल्कि अच्छे से कानून का पाठ भी पढ़ाया।
ये कलेक्टर हैं मोहतरमा प्रतिभा पाल। आप इंदौर में भी बतौर निगमायुक्त पदस्थ रहीं। आपके कार्यकाल में ही बेहद दुःखद और वीभत्स बावड़ी कांड हुआ था। स्नेह नगर में हुए इस हादसे में एक साथ 36 जिंदगियां काल के गाल में समा गई थीं। तब इंदौर कलेक्टर इलैयाराजा टी थे और निगमायुक्त प्रतिभा पाल। बावड़ी कांड नगर निगम के हिस्से का ही था और निगम की घोर लापरवाही के कारण हुआ था। तब भी पाल मैडम का रवैया इंदौर शहर को हजम नहीं हुआ था। हादसे के दिन जब तत्कालीन कलेक्टर राजा स्वयं आपदा प्रबंध दल के साथ जूझ रहे थे, तब मैडम पाल भावशून्य हो फोन पर मसरूफ थीं। एक तरफ तारों निकल रही थीं और कलेक्टर सहित हर चेहरे पर दर्द, पश्चाताप व संवेदना मंडरा रही थी, तब मैडम पाल का असंवेदनशील चेहरा सब तरफ चर्चा का विषय बना हुआ था।
बतौर निगमायुक्त उनका इंदौर का कार्यकाल भी अकड़ से भरा रहा। फिर यह मामला प्रवासी भारतीय सम्मेलन के बेतहाशा खर्च का हो या स्मार्ट सिटी के अधूरे रह गए कामकाज का। या फिर 200 करोड़ के नाला टैपिंग घोटाले के आरोपों का हो या 300 करोड़ की ड्रेनेज योजना का। पाल ने वो ही किया, जो उन्हें पसंद था। उनका कार्यकाल शहर के नए महापौर के लिए भी एक कड़वी याद के रूप में रहा। तब ये चर्चा आम थी कि मैडम का मुख्यालय नगर निगम जरूर था, लेकिन उनके फैसले कहीं और से होते थे। वही अकड़ रीवा में चल नहीं पाई। यह भी बतौर कलेक्टर। जिस मामले में उन्हें कोर्ट में पेश होना था, उसमे उनहोंने अपने अधीनस्थ को भेज दिया। परिणाम 4 घंटे के अल्प अंतराल में कोर्ट रूम में हाजिर होने व कड़ी फटकार के रूप में सामने आया।
अकड़ है कि जाती नहीं, अपनी जगह जूनियर आईएएस को कोर्ट भेज दिया
रीवा में एक किसान की जमीन अधिग्रहण का मुआवजा 1993 के बाद से 2024 तक नहीं मिला था। किसान से 2015 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। कलेक्टर पाल द्वारा इस मसले पर लगातार कोर्ट की अनदेखी की जा रही थी। इससे नाराज होकर जस्टिस विवेक आप्रवाल ने कलेक्टर प्रतिभा पाल को कोर्ट में हाजिर होने के आदेश दिए थे। बावजूद इसके मैडम पाल ने अपनी जगह एक जूनियर आईएएस को कोर्ट भेज दिया। कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया और मैडम पाल को 4 घंटे में हाजिर होने को कहा।
जस्टिस अग्रवाल ने साफ शब्दों में पाल को कहा कि आपको कलेक्टर इसलिए नहीं बनाया गया कि आप लोगों का हक छीने या उनका शोषण करें। जज साहब ने ये हिदायत भी दी कि आज की फटकार को अपने दिमाग में हमेशा के लिए ध्यान से रख लीजिए। कलेक्टर पाल ने सिर झुकाकर जी सर कहा और वुझे मन से एक तरफ हो गई। समूचा कोर्ट रूम इस टिप्पणी पर कलेक्टर पाल जैसा ही हतप्रभ रह गया।