REWA : फिल्म गब्बर की तर्ज पर शहर के निजी नर्सिंग होमों में मरीजों के परिजनों की काटी जाती है जेब

 

मरने के बाद भी इलाज के नाम पर मरीज के परिजनों से की जाती है वसूली

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा। कहते हैं ना कि विकास अपने साथ विनाश लेकर आता है कुछ इसी तरह की कहानी रीवा शहर की भी हो रही है। जहां एक ओर रीवा शहर महानगरों की तर्ज पर विकास कर रहा है इसी तर्ज पर शहर में निजी नर्सिंग होमों के खुलने का सिलसिला अनवरत जारी है। आपको बता दें कि शहर में जितने भी नामी गिरामी नर्सिंग होम है वे सभी या तो संजय गांधी अस्पताल एवं गांधी मेमोरियल अस्पताल (Sanjay Gandhi Hospital and Gandhi Memorial Hospital) से संजय गांधी अस्पताल या गांधी मेमोरियल अस्पताल से सेवानिवृत्ति हुए चिकित्सकों के हैं या फिर या फिर ऐसे चिकित्सकों के रिश्तेदारों के हैं जो वर्तमान में संजय गांधी अस्पताल एवं गांधी मेमोरियल अस्पताल में पदस्थ हैं।

शहर में संचालित इन अधिकतर नर्सिंग होमों की हालत फिल्म गब्बर में दिखाए गए उस नर्सिंग होम की तरह है जहां पर भर्ती मरीज की मौत हो जाने के बाद भी उपचार के नाम पर वेंटिलेटर में रखकर मरीज के परिजनों से एक तरह से जबरन वसूली की जाती है। जब पोल खुलती है तो थोड़ा बहुत हो हल्ला होता है और फिर मामला शांत हो जाता है। कुछ इसी तरह के हालात गत दिवस समान थाना अंतर्गत बरा समान कॉलोनी में स्थित विहान हॉस्पिटल (vihaan hospital rewa) में निर्मित हुई जहां पर भलुहा निवासी माधुरी पटेल नामक महिला को परिजनों द्वारा पेट दर्द की शिकायत पर 10 तारीख को भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों द्वारा बताया गया कि महिला को पथरी की शिकायत है ऑपरेशन के बाद आराम मिल जाएगा।

ऑपरेशन एवं दवाई के नाम पर मरीज के परिजनों से मोटी रकम वसूली गई और फिर दूसरे दिन मरीज की हालत बिगड़ने पर मरीज को वेंटिलेटर पर रख दिया गया जहां पर परिजनों के आने-जाने पर मनाही थी। बस समय-समय पर मरीज के परिजन से अस्पताल प्रबंधन द्वारा रुपए की मांग की जा रही थी शंका होने पर जब मरीज के परिजन वेंटिलेटर रूम में घुसने का प्रयास किए तब चिकित्सकों द्वारा यह बताया गया कि आपके मैरिज की मौत हो चुकी है जिसके बाद मृतका के परिजनों ने हंगामा शुरू किया तो अस्पताल प्रबंधन बैकफुट पर आ गया और मृतका के परिजनों को समझा बुझाकर कुछ रुपए देकर मामले को रफा दफा करना चाहा किंतु मृतका के परिजन अड़ गए और यह पूरा मामला उजागर हो पाया।

यह कहना गलत नहीं होगा कि शहर के ज्यादातर नर्सिंग होमों में उपचार के नाम पर मरीजों के परिजन के साथ लूट की जाती है। सीएमएचओ को चाहिए कि इस तरह के शिकायत मिलने पर संबंधित निजी नर्सिंग होमों के खिलाफ कार्यवाही की जानी चाहिए किंतु होता इसके विपरीत है। कुछ दिन अखबारों एवं सोशल मीडिया में सुर्खियां बटोरने के बाद इस तरह के मामले अक्सर ठंडे बस्ते पर चले जाते हैं मतलब साफ है कि नर्सिंग होमों में चलने वाले भर्रेसाही को अप्रत्यक्ष रूप से सीएमएचओ कार्यालय की सह मिली होती है।