REWA : डॉक्टर बन बैठें डकैत, निजी नर्सिंग होम बन गए लूट का अड्डा

 

ऋतुराज द्विवेदी,रीवा। एक जमाना था जब शहर में गिने चुने एक्का-दुक्का निजी नर्सिंग होम थे किंतु वर्तमान समय में हालात यह है कि रीवा शहर में कुकुरमुत्ता की तरह नर्सिंग होम खुल रहे हैं। कई नर्सिंग होमों की हालत तो यह है कि आलीशान चमचमाती बिल्डिंग खड़ी है किंतु डाक्टरों का कोई अता-पता नहीं है। जिन नर्सिंग होम में विशेषज्ञ चिकित्सक अपनी सेवा देते हैं उन नर्सिंग होम में तो वैसे भी मरीज का तांता लगा रहता है किंतु वहां भी इलाज के नाम पर मरीजों की जमकर जेब काटी जाती है।

वर्तमान समय में शहर के किसी भी नर्सिंग होम में किसी सामान्य बीमारी का अगर मरीज उपचार करने पहुँचता है तो उसे तत्काल अस्पताल में भर्ती होने की सलाह दी जाती है। मरीज के भर्ती होते ही विभिन्न प्रकार की जाँचो का जो सिलसिला शुरू होता है तो वह रुकने का नाम नहीं लेता। अगर इन नर्सिंग होम में कोई मरीज तीन दिन तक भर्ती रहा तो यह पक्की बात है कि उसके परिजनों को लगभग 1 लाख रुपए का फटका लगना तय है। इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि मरीज को समस्या से निजात मिलेगा या नहीं।

निजी नर्सिंग होम में गर्भवती महिलाओं की नहीं होती सामान्य डिलीवरी

वर्तमान समय में शहर में लगभग आधा सैकड़ा से अधिक निजी नर्सिंग होम संचालित है जिनमें से लगभग एक दर्जन निजी नर्सिंग होम ऐसे हैं जिसका संचालन या तो पूर्व नामी गिरामी चिकित्सक कर रहे हैं या फिर वर्तमान गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल में चिकित्सा एवं उनके रिश्तेदारों द्वारा संचालित है। इन नर्सिंग होमों में जब गर्भवती महिलाएं जब अपना उपचार करवाने पहुंचती है तो हर महीने लगभग 500 रुपये डॉक्टर की फीस होती है। इसके अलावा हर तीन महीने में महिलाओं की सोनोग्राफी करवाई जाती है चाहे उसकी आवश्यकता हो या ना हो।

दवाइयों के नाम पर घटिया किस्म की आयरन एवं कैल्शियम की गोलियां एवं सिरफ लिखे जाते हैं जो सिर्फ उन्हें नर्सिंग होम के केमिस्ट काउंटर में उपलब्ध होते हैं। अगर मरीज के परिजन बाहर से दवाइयां खरीदना चाहे तो चिकित्सक की लिखी दवाइयां नर्सिंग होम को बाहर की दुकानों में मिलना मुमकिन ही नहीं है।

नर्सिंग होम के पैथालॉजी की जांच रिपोर्ट संदेहास्पद

शहर में संचालित लगभग सभी निजी अस्पतालों में संचालकों की खुद की पैथालॉजी लैब है या फिर संचालकों द्वारा अपने किसी चहेते को पैथोलॉजी संचालन की अनुमति दी जाती है। निजी अस्पतालों में मरीजों के पहुंचते ही ब्लड की विभिन्न प्रकार की जांचों के साथ-साथ यूरिन एवं स्टूल टेस्ट जबरन लिख दिए जाते हैं चाहे उसकी आवश्यकता हो या ना हो।  जिसके चलते पैथालॉजी संचालकों की भी चाँदी रहती है और सबसे बड़ी बात यह है कि इन पैथालॉजी केंद्रों में डिग्री धारी लैब असिस्टेंट तक नहीं है।

पैथालॉजीयों की हालत तो यह है कि एक डॉक्टर के लेटर पैड में कई पैथालॉजी केंद्रो में मरीजों एवं परिजनों को जांच रिपोर्ट दी जाती है। जबकि नियम यह है कि एक डाक्टर केवल दो पैथालॉजी केंद्रो में ही अपनी सेवाएं दे सकता है। इसीलिए अगर कोई व्यक्ति अलग-अलग पैथालॉजी केंद्रो में एक ही चीज की जांच कराये तो दोनों जांच रिपोर्ट में बहुत अंतर देखने को मिल सकता है। जिम्मेदारों तक पहुंचती है हर माह तगड़ी रकम।

शहर में संचालित आधा सैकड़ा से अधिक संचालित निजी अस्पतालों में से केवल आधा दर्जन अस्पताल ही पूरे नियम कायदाओं से संचालित हो रहे हैं। बाकी सब भगवान भरोसे हैं। कहीं फायर सिस्टम की कमी है तो कहीं नर्सिंग होम के चारों तरफ नियम अनुसार खाली जगह नहीं है कई नर्सिंग होमों में तो पार्किंग तक की भी व्यवस्था नहीं है। ऐसा नहीं है कि इन सब बातों की जानकारी जिले के जिम्मेदार आला अधिकारियों को नहीं है, किंतु सूत्रों की माने तो सीएमएचओ कार्यालय के अदने से बाबू से लेकर वरिष्ठ अधिकारी तक सभी को निजी अस्पताल संचालकों द्वारा हर माह एक निश्चित राशि सेवा शुल्क के रूप में पहुंचाई जाती है।

इसीलिए नियम विरुद्ध तरीके से शहर में कई नर्सिंग होम या निजी अस्पताल धड़ल्ले से संचालित होकर मरीजों के परिजनों की बेखौफ होकर जेब काटने में जुटे हुए हैं।

अगले अंक में शहर के कुछ नामी गिरामी निजी अस्पतालों की कमियां हमारे अंक में प्रकाशित एवं प्रसारित की जायेंगी।